“फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, फूल नहीं मेरा दिल है
प्रियतम मेरे मुझ को लिखना, क्या ये तुम्हारे काबिल है..”
1968 में आई फ़िल्म ‘सरस्वती चंद्र’ का मशहूर गीत है. इस गीत को आवाज़ दिया है पचास और साठ के दशक के मशहूर गायक मुकेश ने. अपनी आवाज़ के ज़रिए वो लोगों के दिलों में छिपे प्रेम भाव को उजागर कर देने में महारत हासिल किए हुए थे. साथ ही अपने दर्द भरे नग़मों से न चाहते हुए भी हर किसी को ग़म की गहराईयों में गोते लगाने के लिए मजबूर कर देते थे.
उनके गाए गानों में एक ऐसा ठहराव है जो आपको दर्द में राहत देता है. उन्हें सुनते हुए लगता है कि आप किसी पहाड़ पर पहुंच गए हैं जहां आत्मा को सुकून देनी वाली बेपनाह शांति है.
दर्द भरे नगमों के बेताज बादशाह मुकेश के गाए गीतों में जितनी संवेदनशीलता और सहजता थी, उतनी ही निजी ज़िंदगी में भी वह बेहद सरल थे. दूसरों के दुख-दर्द को अपना समझकर उसे दूर करने का प्रयास करते थे.
एक क़िस्सा है. बात है साठ के दशक की. गायक मुकेश अपने सिनेमा करियर के बुलंदियों पर थे. एक बार एक लडक़ी बीमार हो गई. उसे मुकेश जी के गाने बेहद पसंद थे. उसने अपनी मां से कहा कि अगर मुकेश उन्हें कोई गाना गाकर सुनाएं तो वह ठीक हो सकती है. मां ने जवाब दिया कि मुकेश बहुत बड़े गायक हैं. भला उनके पास तुम्हारे लिए कहां समय है? यदि वह आते भी हैं तो इसके लिए काफी पैसे लेंगे. तब उस लड़की के डाक्टर ने मुकेश से बात किया. लडक़ी की बीमारी के बारे में बताया.
मुकेश अपना काम रोककर तुरंत लड़की से मिलने अस्पताल आ गए. गाना गाकर सुनाया. इसके लिए उन्होंने कोई पैसा भी नहीं लिया. लड़की की आंखों में ख़ुशी के आंसू झलक पड़े. लडक़ी को खुश देखकर मुकेश ने अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा
“आज यह लड़की जितनी खुश है, उससे कई ज्यादा खुशी मुझे मिली है.”
पहली बार अपनी बहन के शादी में गाया गाना
मशहूर गायक मुकेश का जन्म 22 जुलाई 1923 को दिल्ली में हुआ था. उनका पूरा नाम मुकेश चंद माथुर था. पिता का नाम लाला ज़ोरावर चंद माथुर था, जो ख़ुद एक इंजीनियर थे. मुकेश को बचपन से ही संगीत का शौक़ था. वह अपने ज़माने के प्रसिद्ध गायक और अभिनेता कुंदनलाल सहगल के प्रशंसक थे. उनके जैसा बनने का ख्वाब देखते थे.
बचपन से पढ़ाई में रुचि नहीं थी. दसवीं तक पढ़े. फिर उन्होंने दिल्ली के लोक निर्माण विभाग में कुछ साल नौकरी कर लिया.
लेकिन संगीत में इतनी रुचि थी कि पूरे दिन अपनी बहन से संगीत सिखा करते थे. उनके एक दूर के रिश्तेदार थे मशहूर अभिनेता मोतीलाल. मोतीलाल का योगदान मुकेश के फिल्मी करियर को बनाने में उल्लेखनीय रहा.
बात है मुकेश की बहन की शादी की. इसी शादी में मुकेश गाना गा रहे थे. इस कार्यक्रम में मोतीलाल भी थे. मोतीलाल को मुकेश की आवाज ने प्रभावित हुए. उन्हें मुकेश की दिलकश और सुरीली आवाज़ भा गई. मोतीलाल, मुकेश को अपने साथ मुंबई ले गए. वहीं अपने घर में रहने की जगह दी. साथ ही मुकेश के लिए संगीत रियाज का पूरा इंतजाम किया.
मोतीलाल की सिफ़ारिश पर संगीतकार अशोक घोष के निर्देशन में 1941 में बनी फ़िल्म ‘निर्दोष’ में पहला मौक़ा मिला. पहला ब्रेक मिला. मुकेश ने इस फ़िल्म के लिए ‘दिल ही बुझा हुआ हो तो भी’ गीत गाया. फ़िल्म और गाना दोनों किसी को पसंद नहीं आई. लेकिन मुकेश संघर्ष करते गए.
चार साल कड़ी मेहनत के बाद संगीतकार अनिल विश्वास ने मुकेश को एक बड़ा मौक़ा दिया. साल 1945 में परदे पर फ़िल्म ‘ पहली नज़र’ आई. इस फ़िल्म का एक गीत ‘दिल जलता है तो जलने दे’ काफ़ी मशहूर हुआ. इस गीत को आवाज़ दिया था मुकेश ने. उन्होंने साबित कर दिया कि उनकी आवाज़ में जादू है. इसके बाद मुकेश एक के बाद एक हिट गाने गाए. उनके गाए गीत अमर हो गए.
राज कपूर की आवाज़ मुकेश

मुकेश ने अपनी सुरमई आवाज़ का ऐसा जादू बिखेरा कि हिंदी सिनेमा में ये नाम राज करने लग गया. ये आवाज़ जिस भी गीत को अपनी आवाज़ देती उसका सुपरहिट होना जैसे तय मान लिया जाता था.
वैसे तो मुकेश ने कई एक्टर्स को अपनी आवाज दी, लेकिन उनके गाए गाने सबसे ज्यादा राज कपूर के साथ हिट हुए. मुकेश की आवाज ने तो जैसे राज कपूर के करियर में जादू ही फूंक दिया. राज कपूर के लिए मुकेश ने इतने सारे सुपरहिट गाने गाए कि उन्हें बाद में राज कपूर की आवाज कहा जाने लगा.
‘जीना यहां मरना यहां’, ‘जीना इसी का नाम है’, ‘सजन रे झूठ मत बोलो’, ‘दोस्त दोस्त ना रहा’ जैसे ढेरों ऐसे गाने हैं जिसने राज कपूर के करियर को नई बुलंदियों पर पहुंचा दिया.
गायक मुकेश ने ‘आवारा’, ‘संगम’, ‘धर्म कर्म’, ‘अनाड़ी’, ‘हम हिंदुस्तानी’, ‘कटी पतंग’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘सफ़र’, ‘दिल ही तो है’, ‘तीसरी क़सम’, ‘पत्थर के सनम’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘मिलन’, ‘धर्मवीर’, ‘फ़र्ज़’, ‘मधुमती’, ‘शोर’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘फूल बने अंगारे’, रजनीगंधा’ फ़िल्मों में अपनी आवाज़ आवाज दिया.
मुकेश ने 40 साल के लंबे करियर में लगभग 200 से अधिक फिल्मों के लिए गीत गाए.
उनके मशहूर गीतों में ‘तू कहे अगर’, ‘ज़िन्दा हूं मैं इस तरह से’, ‘ये मेरा दीवानापन’, ‘किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार’, ‘ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना’, ‘जाने कहाँ गये वो दिन’, ‘मैने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने’, ‘इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’, ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’, ‘कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है’, ‘चंचल शीतल निर्मल कोमल’, ‘दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाया’ शामिल हैं.
घर से भागकर किया था शादी
बात है 1940 की. मुकेश अपने रिश्तेदार मोतीलाल के साथ मुंबई आए. मुंबई के कांदिवली इलाक़े में रहने लगे. उनके घर के पीछे ही सरला का घर था. दोनों को इशारों-इशारों में प्यार हो गया. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन सरला का परिवार इस शादी के ख़िलाफ़ था. सरला, गुजराती ब्राह्मण थीं. परिवार करोड़पति था. वहीं दूसरी तरफ़ मुकेश पंजाबी और ग़रीब थे. ख़ुद का मकान तक नहीं था.
सभी बंदिशों के बावजूद भी मुकेश और सरला ने कांदिवली के एक मंदिर में जा कर शादी कर लिया.
मुकेश ने अपने गीतों से लाखों लोगों के दिलों को छुआ और राज किया. उनके गाए एक से एक बेहतरीन गीत आज भी हर किसी की ज़बां पर बसे हुए हैं.
उन्हें ‘सब कुछ सिखा हमने (अनाड़ी)’, ‘सबसे बड़ा नादान वही है(पहचान)’ के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
1974 में आई फ़िल्म ‘रजनीगंधा’ का एक गीत ‘कई बार यूं भी देखा है’ के लिए मुकेश को सर्वश्रेष्ठ गायक के राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से नवाज़ा गया.