अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुशांत सिंह के केस की जांच सीबीआई करेगी.
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक बिहार के पटना में दर्ज एफआईआर कानून के मुताबिक सही है. कोर्ट ने यह भी कहा कि मुंबई पुलिस ने सही से जांच नहीं की.
बता दें महाराष्ट्र सरकार ने पटना में दर्ज एफआईआर का यह कहते हुए विरोध किया है कि ये जांच मुंबई पुलिस को करनी चाहिए. बिहार पुलिस को इस मामले में जांच करने का कोई अधिकार नहीं है.
सुशांत मामले की छानबीन के लिए सीबीआई की SIT टीम मुंबई रवाना होगी.
SC also said that any other FIR registered in connection with the Sushant Singh Rajput's death will also be investigated by the CBI. We hope that we should get justice very soon. The family is very happy with the verdict: Vikas Singh, Lawyer of Sushant Singh Rajput's father https://t.co/93a6w4HoqA
— ANI (@ANI) August 19, 2020
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान के आर्टिकल 142 के तहत यह फैसला सुनाया है. जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि यह केस मुंबई पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आता है, लेकिन मुंबई पुलिस सही से जांच नहीं कर रही थी. इसलिए कोर्ट ने विशेष शक्ति का प्रयोग करते हुए केस को सीबीआई के हाथों में सौंपने का फैसला किया है.
सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल ऐसी महत्त्वपूर्ण नीतियों में परिवर्तन के लिए कर सकता है जो जनता को प्रभावित करती हैं. जब अनुछेद 142 को संविधान में शामिल किया गया था तो इसे इसलिए वरीयता दी गई थी क्योंकि सभी का यह मानना था कि इससे देश के वंचित वर्गों और पर्यावरण का संरक्षण करने में सहायता मिलेगी.
जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सुप्रीम कोर्ट का आदेश सर्वोपरि है. सुप्रीम कोर्ट ऐसे आदेश दे सकता है जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले में न्याय करने के लिये आवश्यक हों. सुप्रीम कोर्ट के दिए गए आदेश सम्पूर्ण भारत संघ में तब तक लागू होंगे जब तक इससे संबंधित किसी अन्य प्रावधान को लागू नहीं कर दिया जाता है.
भारतीय संविधान का आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट को यह विशेष अधिकार देता है. इसका इस्तेमाल कर सुप्रीम कोर्ट विषम परिस्थिति में अपना फैसला सुना सकती है. इस आर्टिकल को “न्यायिक संयम” भी कहा जाता है.
क्या है न्यायिक संयम?
न्यायिक संयम यानी न्यायाधीशों को कुछ मामलों में विशेष अधिकार प्राप्त है, इसके तहत अपनी विशेष शक्ति का उपयोग करके न्याय दे सकते हैं.
न्यायाधीश ऐसे नियमों में बदलाव कर सकते हैं, जहां उन्हें कोई चीज असंवैधानिक प्रतीत हो, क्योंकि असंवैधानिक कानून स्वयं ही विवाद का विषय है. विवाद को टालने और न्याय देने के लिए न्यायाधीश आर्टिकल 142 का उपयोग करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही बीजेपी ने महाराष्ट्र सरकार की खूब आलोचना की. बीजेपी नेता किरीट सौमेया ने तो महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख से इस्तीफा देने के लिए कह दिया. इस फैसले पर महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि ऑर्डर की कॉपी पढ़ने के बाद ही वे इसपर टिप्पणी करेंगे.
The Supreme Court verdict has come, once we get a copy of the order we will comment on it: Maharashtra Home Minister, Anil Deshmukh
The top court has ordered CBI investigation in the #SushantSinghRajputCase. pic.twitter.com/JI393d8tux
— ANI (@ANI) August 19, 2020
वहीं संजय राउत ने इस मामले में कहा कि महाराष्ट्र में सिर्फ कानून का राज चलता है.
इससे पहले राम मंदिर के मसले पर भी आर्टिकल 142 का उपयोग किया गया था. इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने यूनियन कार्बाइड मामले को भी अनुच्छेद 142 से संबंधित बताया था. यह मामला भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों से जुड़ा हुआ है. इस मामले में न्यायालय ने यह महसूस किया कि गैस के रिसाव से पीड़ित हज़ारों लोगों के लिये मौज़ूदा कानून से अलग निर्णय देना होगा.
इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने पीड़ितों को 470 मिलियन डॉलर का मुआवज़ा दिलाए जाने के साथ न्यायालय ने कहा था कि अभी पूरी तरह से न्याय नहीं हुआ है.
बता दें इस फैसले में आर्टिकल 142 का उपयोग होने की वजह से, इसके खिलाफ कोर्ट में याचिका भी नहीं दायर की जा सकती. लेकिन महाराष्ट्र सरकार चाहे तो रिव्यू पिटीशन दायर कर सकती है. यानी कोर्ट अगर उचित समझे तो इस फैसले पर पुन: विचार कर सकती है.