MXPlayer पर रिलीज हुयी रामयुग कुणाल कोहली द्वारा निर्देशित वेब सीरीज है. २०१८ में कुणाल ने अपनी फिल्म रामयुग के बारे में जानकारी दी थी। ये थियेटर में आनेवाली थी परन्तु कोविड के चलते इसे वेब सीरीज के माध्यम से दर्शको के सामने प्रस्तुत किया गया है।
हम सभी रामायण की कथा से परिचित है। पर इस वेब सीरीज में पुरानी कथा को नए तरीके से दिखाया गया है।निर्देशक नया करने के कोशिश में बुरी तरह असफल रहे है। जिस तरह आजकल सभी फिल्मो और वेब सीरीज का चलन है की अंत से शुरू होकर कहानी फ्लैशबैक में जाती है ,यहां भी यही किया गया है। कहानी की शुरुआत सीताहरण से होती है ,फिर फ़्लैश बैक में कहानी जाती आती रहती है। पूरे चार एपिसोड में सीता हरण चलता है।
हम सभी बचपन से किसी न किसी रूप में रामकथा का श्रवण करते ही है, अतः ये प्रयोग विफल सिद्ध होता है।सभी जानते है की राम ने कभी चमत्कार नहीं किये। उन्होंने सदैव साधारण मनुष्य की भाँति ही आचरण किया है। परन्तु यहां राम को साउथ फिल्मो के हीरो की तरह दिखाया है। जहा तक बात अभिनय की है तो मंदोदरी (ममता वर्मा ),कैकेयी ( टिस्का चोपड़ा)और हनुमान( विवान भटेना) ने अपने हिस्से का काम बखूबी निभाया है। पर इनको बहुत कम ही दिखाया गया है।
राम लक्ष्मण रावण हो या अन्य पात्र सबकी आधुनिक हेयर स्टाइल लक्ष्मण के कलर बाल ,हनुमान की अजीबो गरीब रुपरेखा आँखों को कष्ट पहुँचती है। इस वेब सीरीज की सबसे कमजोर कड़ी चरित्र के अनुकूल सही पात्रो का चयन नहीं किया जाना ही है। अब बात करते है मुख्य पात्र राम (दिगंत मनचले ),सीता ( ऐश्वर्य ओझा ) की।
राम में एक मर्यादा पुरुषोत्तम से कही अधिक एक्शन हीरो की छवि नज़र आती है। सीता से तो तो अभिनय के अ की उम्मीद नहीं की जा सकती। सीता द्वारा बोला गया हर संवाद भावहीन है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे ऐश्वर्य कोई गद्य का पाठ कर रही हो। सीता हरण हो या अशोक वाटिका में संवाद,दर्शक किसी भी प्रकार जुड़ते नहीं है।
रावण के रूप में कबीर दुहन सिंह जैसे अच्छे अभिनेता से भी सही काम नहीं लिया गया है। रावण की विद्वता,अहंकार, बदले की भावना में जलते व्यक्तित्व किसी भी भाव को नहीं दिखाया है। विश्वामित्र (दिलीप ताहिल) ,दशरथ (शिशिर शर्मा) तनिक प्रभावित नहीं करते। कौशल्या (सुपर्णा मारवाह ) ठीक थक लगी है।
कई जगह संवाद बहुत अच्छे है परन्तु उनको प्रस्तुत करने की शैली इतनी नीरस है की वो भी उबाऊ लगते है।लक्ष्मण परशुराम राम संवाद का आकर्षण तो कहीं नहीं दीखता। परशुराम द्वारा क्या बकता है और छोकरे जैसे शब्दोंका प्रयोग कराया गया है। नयापन लाने के चक्कर में त्रेतायुग में आज के युग के संवाद लिखे गए है।
निर्माता निर्देशक पटकथा लेखक और साथ ही मुख्य पात्रो द्वारा इस कहानी की प्रस्तुति इतनी निराशाजनक है की क्या कहे। सोने की लंका को काला दिखाना, किसी पात्र का तिलक और जनेऊ न धारण करना, विश्वामित्र को सफ़ेद वस्त्र और राम को भी सन्यासी वेश में न दिखाना इसको निम्न बनाता है।
राम सीता के मर्यादित स्वरुप को आजकल के हीरो हीरोइन के रोमांस के जैसा दिखाना, वीऍफ़एक्स के द्वारा दृश्यों भव्य दिखाने का असफल प्रयास किया गया है। गाने अच्छे है। पर स्थिति के अनुरूप सहज नहीं लगते।दशरथ मृत्यु, भरत मिलाप, सीता हरण ,सशोक वाटिका में सीता के शोक वाले ह्रदय विदारक प्रसंगो को भी बोझिल बना दिया है। पटकथा संवाद अत्यंत निम्नस्तर के है। यह वेब सीरीज फ्री है तो आप एक बार देखने का कष्ट कर सकते है। अन्यथा न ही देखे।